Saturday, March 10, 2012

पूर्वजों के संकेत.....

बरसों के बाद होली के दिन अपने गृहनगर स्थित पैतृक-निवास में रहना एक पुरसुकून अनुभव था. बाद में दोपहर के वक़्त, फ़ूफाजी की बैठक में गप-शप के दौरान बार-बार मेरी निगाह कुछ तस्वीरों पर पड़ती रही. ये तस्वीरें उन बुज़ुर्गों की थीं जिनकी गरिमामय उपस्थिति से वह बैठक कभी आबाद रहा करती होगी.

मैंने सहसा चर्चा छेड़ी कि घर के विभिन्न हिस्सों में (ख़ासतौर से बैठकों में) पूर्वजों की तस्वीरें क्यों लगाई जाती हैं ? पिछली तीन-तीन पीढ़ियों के लोग (जिनके बारे में हम उनके नाम के अलावा बहुत कम जानते हैं...)......इन तस्वीरों में से झाँक-झाँक कर हमसे क्या कहते हैं ?

फ़ूफाजी ने बताया – “इन तस्वीरों में से झाँककर ये पूर्वज हमसे कहते हैं कि यह सारी सम्पत्ति, ये सब ठाठ-बाट हमारे साथ नहीं गए, तुम्हारे साथ भी नहीं जाएँगे.....इसलिए न तो इस सम्पत्ति के सुख को भोगने पर इतराना और न ही इसके लिए अपनों से कोई विवाद करना”.....

यह बात तो मैंने सोची भी नहीं थी लेकिन इस विचार के साथ असहमति का भी तो कोई प्रश्न नहीं था...!!

"तीनों बच गए....."


फ़सल की आवक को समारोह-पूर्वक मनाने (Celebrate करने) की संस्कृति के साथ धार्मिक आस्था वाले लोगों को होली के माहौल में राक्षसी होलिका, भक्त प्रह्लाद और भगवान विष्णु के नरसिंह-अवतार की याद आती है लेकिन मुझे इस महौल में ग़ब्बर सिंह की याद आ गई क्योंकि होली के दिन ही गब्बर ने जय और वीरू पर काउण्टर-अटैक की शुरूआत की थी.

उसके बाद उसी साल (सन 1975 में) किसी दिन हथकटे ठाकुर ने न जाने किस ईश्वरीय चमत्कार से (उड़-उड़ कर) वीरू व रामपुर के ग्रामीणों की निगरानी में गब्बर सिंह को अधमरा कर दिया था. चूँकि गब्बर को जीवन से पूर्ण-मुक्ति प्रदान करने वाला सीन काटना था इसलिए सबका काम ख़त्म हो जाने के बाद अपनी आदत के मुताबिक़ फिल्मी-पुलिस बुला ली गई.

उसके बाद से गब्बर सिंह जेल में ही होगा, ऐसी उम्मीद है क्योंकि बाद में न तो जेल तोड़कर भागने की कोई ख़बर आई और न ही उसकी मौत की पुष्टि हुई. इसीलिए वह कभी-कभी बोल पड़ता है क्योंकि उसके डायलॉग्स सबको पसन्द आते हैं.

अधिकतर वह अपने से मिलते जुलते धन्धे वालों के बारे में ही बोलता है. उसको दुख है कि उसने अपने धन्धे का सारा समय झाड़ियों व पत्थरों के बीच एक बिना धुली फ़ौज़ी-पोशाख़ में निकाल दिया और आज उसके सम-व्यवसायी लोग दिन में तीन-तीन बार धवल वस्त्रों में कैमरे के सामने आते रहते हैं. इन लोगों ने इनाम की राशि (50,000) को भी कहीं का नहीं रखा...........भाई लोग करोड़ों-अरबों की खुली लूट करते हैं...!!......

फ़िलहाल गब्बर चुप है.....लेकिन वह बोलेगा.....उसके कोई सम-व्यवसायी चुनाव जीतेंगे तब बोलेगा.....कोई जेल जाएगा तब बोलेगा.....कोई छूट के आएगा तब बोलेगा.........उसे मालूम है कि आवाज़ कभी नहीं मरती......वह जानता है कि उसके डायलॉग अमर हैं...तभी तो गब्बर निश्चिंत है.

अभी गब्बर की निगाह कलमाड़ी, राजा और येदियुरप्पा पर है......उसे विश्वास है कि उसका एक मशहूर डायलॉग फिर गूँजेगा तीनों बच गए....