Sunday, December 14, 2014

ऐसी ग़लती....!!....स्वप्न में भी नहीं.......(05.09.2011)

बहुत पुरानी बात है जब मैं चौथी / पाँचवी कक्षा में पढ़ता था और एक रिटायर्ड मास्टर जी के घर ट्यूशन पढ़ने जाया करता था.......वे मास्टर जी इतने सीनियर थे कि उन्होंने मेरे पिताजी को भी पढ़ाया था........उस वक़्त की ट्यूशन्स आज की व्यावसायिक कोचिंग की तरह नहीं थी. रिटायर्ड टीचर लोग अतिरिक्त आय के अर्जन के लिये सीमित ट्यूशन्स पढ़ाते थे और कई विद्यार्थियों से पै...से भी नहीं लेते थे.....मेरी शिफ़्ट के लड़कों में, मैं सबसे छोटा और (दिखने में) सबसे सीधा व शरीफ़ था इसलिए जब साथी लोग अत्यधिक शरारत करते थे तो उनकी जमकर पिटाई होती थी और मैं बच जाता था..........लेकिन किसी ने मास्टर जी को यह बात जँचा दी कि – “यह उतना सीधा नहीं है जितना दिखता है.....”.......और यह भी कि – “यह ख़ुद शरारत भले ही नहीं करता है, लेकिन सारे फार्मूले इसी के चलते हैं.....” (यह बात 75 % से ज़्यादह सही नहीं थी)......इस चुगली के बाद मास्टर जी ने पिटाई में भेदभाव करना बंद कर दिया और सबके साथ एक-दो बेंत या चाँटे मुझे भी पड़ने लगे.....मुझे मास्टर जी पर गुस्सा आने लगा....और यह दूषित विचार मन में आया कि किसी दिन मास्टर जी को गाली देकर भाग जाऊँगा, और फिर उनके यहाँ पढ़ने नहीं जाऊँगा.......यह बात मेरे मन में इतनी जम गई थी कि अचेतन मस्तिष्क ने एक रात मुझे स्वप्न में उस (अ)वाँछित स्थिति से रूबरू करा दिया......मैने स्वप्न में देखा कि – “किसी अन्य की ग़लती के लिए मास्टर जी ने मुझे डाँटा, तो स्वप्न में ही मुझे यह ख़याल आया कि अच्छा मौक़ा है......बक दो गाली....सपना ही तो है......मारने आएँगे तो जाग जाएँगे, अपन.....!!” .......और मैंने बक दी एक गन्दी सी गाली – मास्टर जी को........ लेकिन चाँटा फिर भी पड़ा, और मेरी नींद खुल गई क्योंकि यह चाँटा स्वप्न का नहीं बल्कि असली था, हुआ यह था कि मेरे द्वारा मास्टर जी को सपने में दी गई गाली एक ‘बुलंद बड़बड़ाहट’ के रूप में मेरे मुख से प्रस्फुटित हुई..........पिताजी जाग रहे थे.....और ओमप्रकाश शर्मा का कोई जासूसी उपन्यास पढ़ रहे थे..... चाँटे से नींद खुली तो मैंने सुना कि – “बिगड़ता जा रहा है, दिनों-दिन.....आवारा लड़कों के साथ रहकर गाली बकना भी सीख गया है......” .......और मैं फिर रोते-रोते सो गया.....


उस दिन सबक मिला (जिसे आज “मॉरल ऑफ़ स्टोरी कहा जा सकता है), कि –

 “अपने शिक्षक, अपने गुरू को स्वप्न में भी गाली नहीं बकना चाहिये......."

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