Sunday, December 14, 2014

अपना तो हर दिवस 'हिन्दी-दिवस' है (14.12.2012)

यह मत समझिएगा कि हिंदी-दिवस के उपलक्ष्य में दूसरों की देखा-देखी कुछ उपदेश देने या भाषा के प्रति अपनी 'कट्टर-आस्था' दिखाने जा रहा हूँ.......ऐसा कुछ ख़ास नहीं है........14 सितम्बर के लिए कहने को अपने पास अलग से कुछ नहीं है......होगा यह "एक दिन का हिंदी-दिवस" बाक़ी सब के लिए....अपने लिए तो हर दिवस 'हिन्दी-दिवस' है.....लेकिन अंग्रेज़ी को गाली देना उचित न...हीं लगता क्योंकि चाहे-अनचाहे बैंक का कुछ काम तो अंग्रेज़ी में करना ही पड़ता है न...!....कोशिश रहती है कि बैंक का भी अधिक से अधिक काम हिंदी में करूँ.....अपना तो पत्र-लेखन, नोट बनाना और बोलना-बतियाना भी 90 प्रतिशत हिन्दी में ही होता है.....बैंक में इतनी हिन्दी वापरने वाले बहुत कम लोग होंगे......'इंदौर-बैंक' में 'हिंदी-पखवाड़े' मे 'शुद्ध-लेखन' व 'अनुवाद-प्रतियोगिताओं' के कुछ पुरुस्कार भी लिए हैं....पुराने साथी कहते हैं कि ”इंदौर-बैंक” में हिन्दी में ऑडिट-रिपोर्ट्स लिखने की शुरूआत मैंने ही की थी और जितनी ऑडिट-रिपोर्ट्स हिन्दी में मैंने लिखीं, उतनी उस बैंक के इतिहास में किसी ने नहीं लिखीं (इसे मेरी आत्म-श्लाघा का स्व-प्रसारण न समझिए....ये बातें अन्य स्नेही सहकर्मियों ने मुझे बताईं वर्ना अपुन तो बिंदास तबीयत के साथ काम में लगे रहने वाले जीव हैं)........मेरे तो हस्ताक्षर भी हिन्दी में ही हैं....जो कि अधिकतर लोगों के नहीं होते हैं.......लोग कहते हैं कि 'हस्ताक्षर की कोई भाषा नहीं होती'.....मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ...हस्ताक्षर की कोई भाषा दूसरे के लिए न होती हो पर हस्ताक्षर करने वाले के लिए तो होती है क्योंकि वह जानता है कि पहली बार उसने अपने हस्ताक्षर किस भाषा की लिपि में बनाए थे......कुछ समय पहले 'फेसबुक' पर ही किसी की पोस्ट पर हिन्दी के समर्थन में कुछ कहा तो एक मित्र ने 'अंग्रेज़ी का विरोधी' कहकर मुझे अनपढ़ करार देने की कोशिश की....लाख समझाया कि हिन्दी मेरी अपनी भाषा है और अपनी भाषा के समर्थन को दूसरी भाषा का विरोध न समझा जाए.....आज उसका एकदम उल्टा हुआ......जब मैंने कहा कि "हिन्दी को अपनाने के लिए अंग्रेज़ी का विरोध ज़रूरी नहीं है" तो कुछ मित्रों ने इसे अंग्रेज़ी का समर्थन मान लिया.....अगर यह सच है कि एक भाषा, दूसरी भाषा की पूरक, स्थानापन्न या विकल्प नहीं हो सकती तो यह भी सच है कि एक भाषा को अपनाने के लिए दूसरी भाषा को कोसने की भी कोई तुक नहीं है क्योंकि हिन्दी-अंग्रेज़ी का मामला राम और रावण का मामला नहीं है……मैं पूर्णत:हिन्दीमय हूँ  फिर भी मुझे अंग्रेज़ी को कोसना या गाली देना ज़रूरी नहीं लगता.

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