Sunday, December 14, 2014

मध्यम वर्गीय "त्रिशंकु" (30.11.2011)

अमीरी और ग़रीबी के बीच की खाई बढ़ती जा रही है

लेकिन उस खाई में गिर कौन रहा है..?

मुझ जैसा एक आदमी

जो ग़रीब के लिए अमीर है और

अमीर के लिए ग़रीब

(ऐसा इसलिए कि जो वास्तव में ग़रीब है

वह तो अमीर के लिए आदमी ही नहीं है न !!)

मुझ जैसा आदमी ही है

अमीर के उपहास

और ग़रीब की ईर्ष्या का पात्र

अमीर और ग़रीब अपनी-अपनी जगह पर सलामत हैं

उनकी पोज़ीशन को कोई ख़तरा नहीं

क्योंकि एक को थोड़ा सा कुछ खोने से कोई फ़र्क़ नहीं

और दूसरे के पास खोने को अब कुछ बचा ही नहीं...!!

दोनों के सभी ग्रह बलवान हैं

इन दोनों अलग अलग शिखरों के बीच है एक गहरी खाई,

जिसमें खुद को गिरने से बचाने का प्रयास करता हुआ

लटका है मुझ जैसा एक आदमी

इज़्ज़त नाम की किसी चीज़ से बना पैराशूट लिये

जिसको युगों से थामे हुए थकने लगे हैं उसके हाथ

लेकिन उसने छोड़ा नहीं, क्योंकि इसी पर तो

जीवन सही सलामत टिका है उसका !

इसको छोड़कर न जाने किस गहराई में गिरना होगा

इस भय ने परेशान कर रखा है उसको

कभी कभी सोचता है वह कि छोड़ ही दे

यह पैराशूट और गिर जाने दे ख़ुद को

खाई में, जहाँ और कुछ नहीं तो

मिल ही जाएगी उसको भी

अब और कुछ खोने के भय से मुक्ति का एहसास

दिलाती एक ‘पूस की रात’,

आराम से पैर सिकोड़ कर

हमेशा के लिए सो जाने को.....!!

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