Sunday, December 14, 2014

वामपंथी विचारधारा बनाम राजनीति

मैं परेशान हूँ, अपने कुछ प्यारे भाईयों  की परेशानी देखकर.....कभी कोई कम्युनिट-नेता दलितों को मन्दिर ले जाता है तो परेशान हो जाते हैं...!....कभी कोई कम्युनिस्ट-नेता हज करने चला जाता है तो भी उनकी तरफ़ से बहुत तल्ख़ प्रतिक्रिया आती है...!!....अरे ज़नाब, क्या आप जानते नहीं कि "भारत में 'कम्युनिस्ट-विचारधारा' और 'कम्युनिस्ट-राजनीति' दोनों अलग-अलग आइटम्स ह...ैं...??".....और क्या यह कटु यथार्थ भी आपको पता नहीं कि "हमारे महान प्रजातंत्र में राजनीति की दुकान, 'जातिवाद' और 'धर्म' के सहारे ही चलती है"......??......जो दलितों को मन्दिर ले जाते हैं या सजदे का टीका धारण करते हैं, तीरथ और हज पर जाते हैं उनको अपनी राजनीति भी सम्हालनी है कि नहीं....??......क्या जातिवाद और साम्प्रदायिकता के खेल खेलने का ठेका सिर्फ़ काँग्रेस, बीजेपी, मुलायम, लालू और मायावती ने ले रखा है....??.......कॉमरेड ज्योति बसु ने एक चौथाई सदी से ज़्यादा का अपना राजपाट क्या मार्क्स के सिद्धांतों के दम पर चलाया था ?......नहीं....ज्योति दा ने अपनी राजनीति को विशुद्ध काँग्रेसी स्टाइल में चलाया था.......उनके कम्युनिस्ट वोटरों ने 'काली-पूजा', नमाज़, तीरथ या हज का त्याग नहीं किया.....और फिर वामपंथी विचारधारा को सम्हालने की ज़िम्मेदारी को इस देश में अच्छे-अच्छे लेखकों ने ले तो रखी है....!!.....फिर नेतागण क्यों परेशान हों....??.......but, still If you feel that the act of Communist Leaders is a failure of Communism in this country, solution of your PARESHANI is to simply ACCEPT IT....!! .......बाक़ी फिर कभी......अभी इसी बात पर मित्रगण अपनी प्रतिक्रिया दें......कटु-प्रतिक्रिया का भी स्वागत है क्योंकि आज ही विचार उत्पन्न हुआ कि "दोस्तों की तल्ख़ी ही सबसे मधुर होती है..."

No comments:

Post a Comment